हर घर हर दिन आयुर्वेदा अभियान–
हर साल 23 अक्टूबर को धन्वंतरी जयंती पर आयुर्वेद दिवस मनाया जाता है। इस साल आयुर्वेद दिवस को मनाने के लिए आयुष मंत्रालय ने खास तौर पर AIIA को नोडल एजेंसी के रूप में चुना है।
ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ आयुर्वेदा (AIIA) ने आयुष मंत्रालय के तहत, आयुर्वेदा के सम्मान में कई कार्यक्रमों का आयोजन किये है। 12 सितम्बर – 23 अक्टूबर तक (6 हफ्ते) का यह हर घर हर दिन आयुर्वेदा कार्यक्रम देश के हर घर और नागरिक तक आयुर्वेदा को पहुंचने का प्रयास है।
यह सारे विभाग भारत के इस पारंपरिक चिकित्सा पद्धत के प्रति देशभर के लोगों में जागरूकता फैलाएंगे और उन्हें इसके महत्व से अवगत करेंगे।
देश भर से सारे आयुर्वेदिक डॉक्टरों ने इस अभियान का स्वागत करते हुए अपना सहभाग दर्शाया है।
हर घर हर दिन आयुर्वेदा अभियान से भारत में क्रांति कैसे आएगी ?
घर हर दिन आयुर्वेदा अभियान आयुर्वेद के प्राचीन परंपरा को पुनर्जीवित करेगा। इस चिकित्सा पद्धत की उत्पत्ति 3,000 साल पहले भारत में हुई थी। भले ही यह पूर्वी (Eastern) देशों में स्वास्थ्य देखभाल का सबसे पसंदीदा रूप बना हुआ है, आजकल पश्चिमी (Western) देशों को भी इसके महत्व का एहसास हो गया है।
वैज्ञानिक चिकित्सा याने एलॉपथी की तरह, आयुर्वेद में निवारक (preventive) और उपचारात्मक (curative) दोनों पहलू हैं।
निवारक घटक (Preventive Aspect)
यह व्यक्तिगत और सामाजिक स्वच्छता की एक सख्त दिनचर्या की आवश्यकता पर जोर देता है, जिसका विवरण व्यक्तिगत, जलवायु और पर्यावरणीय आवश्यकताओं पर निर्भर करता है। शारीरिक व्यायाम, जड़ी-बूटियों का उपयोग और योग उपचारात्मक उपायों का हिस्सा हैं।
उपचारात्मक घटक (Curative Aspect)
इस पहलु में हर्बल दवाओं, बाहरी तैयारी, फिजियोथेरेपी और आहार का उपयोग शामिल है। यह आयुर्वेद का एक सिद्धांत है कि प्रत्येक रोगी की व्यक्तिगत आवश्यकताओं के लिए निवारक और चिकित्सीय उपायों को अनुकूलित किया जाना चाहिए।
पश्चिमी चिकित्सा के विपरीत, आयुर्वेद उपचार और दवा किसी भी दुष्प्रभाव से मुक्त हैं। ये औषधीय तकनीक पूरी तरह से रासायनिक मुक्त हैं और किसी व्यक्ति की समग्र भलाई में योगदान करती हैं।
हर दिन हर घर आयुर्वेद अभियान इस प्रकार आयुर्वेद को प्रोत्साहन देकर व्यक्ति के समग्र भलाई पर ध्यान केंद्रित करेगा। इस मोहिम के तहत देश को स्वस्थ बनाया जा सकता ह।
आयुर्वेद का समृद्ध इतिहास
आयुर्वेद का श्रेय धन्वंतरि को दिया जाता है, जो हिंदू पौराणिक कथाओं में देवताओं के चिकित्सक थे, माना जाता है उन्होंने साक्षात् ब्रम्हदेव से विद्या प्राप्त की थी। इसकी प्रारंभिक चिकित्सा पद्धातो को वेदों के हिस्से में निर्धारित किया गया था जिसे अथर्ववेद के रूप में जाना जाता है।
वेद रोगों के उपचार के लिए जादुई प्रथाओं में समृद्ध हैं और पारंपरिक रूप से बीमारियों का कारण माने जाने वाले राक्षसों के निष्कासन के लिए आकर्षण में हैं। उल्लिखित मुख्य स्थितियां बुखार (तकमान), खांसी, खपत, दस्त, ड्रॉप्सी (सामान्यीकृत एडिमा), फोड़े, दौरे, ट्यूमर और त्वचा रोग (कुष्ठ सहित) हैं। उपचार के लिए असंख्य जड़ी-बूटियाँ हैं।
भारतीय चिकित्सा का स्वर्ण युग, 800 ईसा पूर्व से लगभग 1000 सीई तक, विशेष रूप से चरक-संहिता और सुश्रुत-संहिता के रूप में जाने जाने वाले चिकित्सा ग्रंथों से किया गया है।
जिसका श्रेय क्रमशः कारक, एक चिकित्सक और सुश्रुत, एक सर्जन को दिया जाता है। सुश्रुत-संहिता संभवतः पिछली शताब्दी में उत्पन्न हुई थी और 7 वीं शताब्दी ईस्वी तक अपने वर्तमान स्वरूप में स्थिर हो गई।
भारतीय चिकित्सा पर बाद के सभी लेखन इन कार्यों पर आधारित थे, जो पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश के साथ-साथ तीन शारीरिक हास्य (वात, पित्त और कफ) के संदर्भ में मानव शरीर का विश्लेषण करते हैं।
जोरो-शोरों से चल रहा है “हर घर हर दिन आयुर्वेदा” अभियान
आयुष मंत्री सर्बानंद सोने वाला जी ने कहा, “6 सप्ताह चलने वाला यह कार्यक्रम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की परिकल्पना को आगे बढ़ाने का एक प्रयास है। यह कार्यक्रम तभी सफल होगा जब हम भारत के हर नागरिक तक पहुंचने में सक्षम होंगे इसलिए आने वाले हफ्तों में हम अपनी सारी ऊर्जा और ध्यान लोगों के साथ संवेदनशील बनकर आयुर्वेद का संदेश पहुंचाने में व्यतीत करेंगे। हर दिन हर घर आयुर्वेद घर-घर में समग्र स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद इसमें पर हम देश को स्वस्थ और मजबूत बनाने की कोशिश करेंगे।”
AIIA की निर्देशक प्रोफेसर तनुजा नेसारी ने बताया, “आने वाले कुछ हफ्तों तक जनसंदेश जनभागीदारी और जन आंदोलन के लक्ष्य और उद्देश्य के साथ आयुर्वेद के महत्व संबंधी प्रचार होगा। इसमें भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों की भागीदारी भी आप देख पाएंगे”
कई आयुर्वेदिक डॉक्टर जैसे Dr. Harsh Dhingra, M.D.(Ayu. Med.), Aayas Ayurvedic Hospital, इस अभियान में काम कर रहे है और इसे सफल बनाने के लिए समर्पित रूप से भाग ले रहे है।
हम-आप कैसे योगदान करे ?
आजकल खान-पिन में तो मिलावट है ही, साथ में एलॉपथी दवाइयां के कई सारे दुष्प्रभाव भी है।
आयुर्वेदा हमारा अपना चिकित्सा उपचार है, हमें इस पर गर्व होना चाहिए। सिर्फ इसलिए नहीं कि यह हमारा है, बल्कि यह समय की मांग है। आयुर्वेद लोगों के लिए वरदान साबित होगा।
हमे इसके प्रति जागरूक होना चाइये। fithumarabharat जैसी वेबसाइटें आयुर्वेद और प्राकृतिक उपचार के तरीको के प्रति समर्पित हैं।
आयुर्वेद उपचार से ठीक होने वाले मरीजों की केस स्टडी
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