डिप्रेशन एक क्रिटिकल मुद्दा है। WHO के अनुसार, हर साल 800,000 से अधिक लोग आत्महत्या के कारण मर जाते हैं। 15-29 वर्ष के बच्चों में मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण- आत्महत्या है।
हम आपसे अनुरोध करते हैं कि आप पूरा ब्लॉग आखिर तक पढ़ें।
इसमें हम डिप्रेशन के अनछुए पहलु और इलाज के बारे में देखेंगे।
जिस मनुष्य के पास अच्छा स्वस्थ नहीं है, समझो उसके पास सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं
इस सुविचार को अब हम सभी लोग मानते है।
स्वास्थ्य संबंधित काफी जागरूकता आयी है, जिससे हर कोई अपनी डाइट और शारीरिक फिटनेस पर खासा ध्यान दे रहे है।
पर हमारी मेन्टल हेल्थ यानी मानसिक स्वास्थ्य, उसका क्या?
भारतीय मानसिक स्वास्थ्य
हमारी देश की आबादी लगभग एक अरब है। हमने मानसिक बीमारी को कलंक समझ रखा है, जागरूकता की कमी और सही मदद ना मिलने के कारण, केवल 10-12% पीड़ित को ही उपचार मिल पाता है।
लोगो को इसकी सीरियसनेस का पता ही नहीं है।
नीचे दिए गए डाटा भारत की मानसिक स्वास्थ्य स्थिति को दर्शाता है:
डिप्रेशन- डीप डाइव
प्राकृतक रूप में डिप्रेस्शन यह है की – आपके अंदर काफी तीव्र विचार और गहरी भावनाएं पैदा हो रही है, जो आपके खिलाफ शारीरिक और मानसिक रूप से काम कर रही है।
शारीरिक बीमारी बाहरी कारणो से, आपके पूर्वजो से, आदि से आ सकती है।
परन्तु मानसिक स्वास्थ्य के मामले में ऐसा नहीं है।
यह पूरी तरह से हमारे द्वारा नियंत्रित है और होनी चाइए। अगर हम किसी मानसिक स्वास्थ्य से पीड़ित हैं, तो निश्चित रूप से समस्या यह है कि, हम अपने आप को सहजता से नहीं चला पा रहे।
डिप्रेशन के लिए दो बात तह है:
- पहली की यह एक मानसिक बीमारी है और
- दूसरी यह की – हर पीड़ित व्यक्ति इस बीमारी के लिए जिम्मेदार है, यह खुद की बनाई हुई बीमारी है।
शारीरिक बीमारियो का जन्म
हम जिम्मेदार है अपनी 70 -80 % बीमारियों के लिए। बचपन से ही हम अपने शरीर को बीमार बनाने की प्रैक्टिस कराये जा रहे है।
- हम अपने बच्चो का सबसे ज्यादा ख्याल और ध्यान- उनके बीमार होने पर देते है।
- जब वे खुश या उत्साहित होते हैं, तब इतना शामिल नहीं होते, जितना उनको यह यकीन दिलाने में- की बीमार होने में हम उनके साथ है।
- कड़वी बात है पर सच्चाई है की यहीं से हर व्यक्ति बीमार होना और दुसरो का ध्यान खीचना सीखता है।
- आप देखेंगे बच्चे स्कूल या कोई क्लास न जाने के, पेट दर्द आदि कितने बहाने ढूँढ़ते है।
- बडे होने पर ऑफिस ना जाने के बहाने।
- कभी थोड़ी धूप, ठंड, बारिश का बहाना बनाके शरीर को घर से नहीं निकालते।
- हर प्रस्तिथि में शरीर को आराम देने की प्रैक्टिस कराते रहते है।
यह कारण से शारीरिक बीमारिया घर कर लेती है।
सरल उपाय:
पहले तो बीमार होने का ढोंग बंद करे।
अगर आपकी तबीयत ठीक न हो, तो सुनिश्चित करें कि आप बिस्तर पर लेटकर दवा ही नहीं खाते रहे।
अपनी दैनिक गतिविधि करने के लिए मजबूत और साहसी बनें। कम से कम सर्दी, खांसी, बुखार, सिरदर्द आदि जैसी छोटी-छोटी समस्याओं में।
यदि आप माता-पिता हैं, तो यह आपके बच्चों को पर्याप्त संकेत देगा कि उन्हें अपना काम पूरा करना है।
ऐसा कहा जाता है कि बीमारी के दौरान भी महात्मा गांधी जी ने अपने नियमित काम को कभी नहीं रोका। और यही कारण है कई हिंदू धर्म प्रचारकों बहुत फिट है या सिर्फ उम्र वाली बीमारी है।
मानसिक बीमारियो का जन्म
कुछ इसी प्रकार मानसिक बीमारी का जन्म होता है। दूसरो का ध्यान खींचने के लिए, आपको लगता है की आप का हक़ है:
- नखरे दिखाना
- लोगो पर गुस्सा करना
- लोगो पर चिलाना
- दिन भर चिंता करना
- आप डिप्रेस्ड रहे, ताकि आप लोगो का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर सके
आज ऐसी कई फिल्में, वेबसीरीज हैं जो प्रसिद्ध होने के लिए ऐसे नकारात्मक चरित्र दिखाती हैं। और आज की पीढ़ी इस नकारात्मक चरित्र को कॉपी करती है।
आप यह करते रहिये और एक दिन आएगा यह खेल आपका जीवन बन जायेगा, आप चाह के भी इस से बाहर नहीं आ पायेंगे।
यही डिप्रेशन का जन्म होता है।
तनाव कम करने के लिए हमारा- यह ब्लॉग पढ़ सकते हैं👇
डिप्रेशन (अवसाद) के लक्षण
यह सभी डिप्रेशन के सामान्य लक्षण हैं जिन पर हम नजर रख सकते हैं।
- उदासी, अशांति या अकेलापन महसूस करना।
- छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा आना, चिड़चिड़ होना
- मनोरंजक चीजें जैसे खेलकूद या मूवी में रुचि ना होना
- थकान या ऊर्जा की कमी महसूस करना
- बार-बार चिंता बेचैनी होना
- बिना वजह एग्रेसिव हो जाना
- आत्महत्या और मरने का ख्याल
- महत्वपूर्ण चीजों को याद न रखना
- ध्यान केंद्रित करने में मुश्किल हो ना
- शरीर में दर्द होना जैसे पेट दर्द कमर दर्द
- भूख न लगना और अचानक वजन घटना
अगर आप खुद को इस स्थिति में पाते हैं, तो चिंता न करें। सबसे अच्छी बात यह है कि आप इसे जानते हैं और इसे स्वीकार करते हैं।
अगर अपने आस-पास कोई डिप्रेशन से पीड़ित व्यक्ति मिले तो भी घबराने की जरूरत नहीं है।
डिप्रेशन का इलाज 4 तरीके – सरल, प्रभावी और दीर्घकालिक समाधान।
1. सकारात्मक और उर्जा दाई लोगों के साथ रहे।
हमारे जीवन मे अशांति ,परेशानियां तब शुरु हो जाती है जब जीवन मे सत्संग नही होता। हम जीवन को जीते चले जा रहे है, लेकिन कैसे जीना चाहिये, यह नहीं पता ?
धन कमा लिया, मकान बना लिया, शादी घर परिवार बच्चे सब हो गये, गाडी खरीद ली, फिर भी चिंता और परेशानी ख़तम नहीं होती।
सत्संग मे जीवन जीने की बाते बतायी जाती है, उसी से सच्चे आनंद और सुख की प्राप्ति होती है।
आज की मीडिया ने पैसा कमाने के लिए साधु-संतो की ऐसी-तैसी कर रखी है और हमारी पीढ़ी को सच्चाई से कुछ नहीं लेना-देना। Likes, share और subscribe की भागदौड़ चालू है। दूसरो को गिराना, जलील करना, मजाक बनाना मायने रखता है। सत्संग का महत्त्व खो गया है और इसीलिए इतनी मानसिक बीमारिया है।
कबीर जी कहते है:
राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय
संतो के संग से मिलने वाला आनंद तो बैकुण्ठ मे भी दुर्लभ है
जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होय !!
सत्संग की बहुत महिमा है सत्संग तो वो दर्पण है जो मनुष्य के चरित्र को दिखाता है ओर साथ साथ चरित्र को सुधारता भी है।
रामचरित मानस में कहा गया है की:
सतसंगत मुद मंगल मूला।
अर्थातद सत्संग सब मङ्गलो का मूल है. जैसे फुल से फल ओर फल से बीज ओर बीज से वृक्ष होता है उसी प्रकार सत्संग से विवेक जागृत होता है। (4)
सोइ फल सिधि सब साधन फूला॥
सठ सुधरहिं सतसंगति पाई।
पारस परस कुधात सुहाई॥
बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं।
फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं॥
मेरा अनुरोध है की आप अपने आसपास सत्संग जाना शुरू करे और अपने बच्चो को भी लेजाए।
यक़ीनन डिप्रेशन का यह सबसे बेहतरीन इलाज है।
2. जहां भी संभव हो हमेशा दूसरों की मदद करें।
मुझे यकीन है कि हम में से कई लोग, कई छोटी-छोटी चीजों में दूसरों की मदद करते रहते हैं। लेकिन मैं इसे अगले स्तर पर ले जाने की बात कर रहा हूं।
किसी भी वृद्धाश्रम या अनाथालय से जुड़े और कम से कम अपने हफ्ते का एक दिन या कुछ घंटे उनके साथ बिताएं। आप स्वतः ही उनकी सहायता करेंगे।
पैसा देना ही केवल मदद नहीं, बल्कि उनके साथ बात करना, उनकी कहानियाँ सुनना उन लोगों के लिए बहुत बड़ी मदद है, जो अकेले हैं।
इससे आप खुद भी खुश होंगे और दुसरो के जीवन में खुशियां बाँट सकेंग।
3. आपका काम करने का लक्ष्य ढूंढे और उस पर फोकस करें।
यह महत्वपूर्ण है कि आपके जीवन में कुछ लक्ष्य हों। इससे आपके दिमाग को एकाग्र होने में मदद मिलेगी, नहीं तो “खाली दिमाग शैतान का घर”
शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म लक्ष्य होने चाहिए। आप हरदिन अपने लिए कुछ लक्ष्य रख सकते है। जैसे टाइम पर ऑफिस पहुँचना मेरा लक्ष्य होता है, समय पर खाना भी लक्ष्य है, अपना कोई काम पूरा करना या मित्र के साथ बात करना आदि।
4. सत्य बोलना
आजकल हम हर छोटी छोटी चीज़ो में झूठ बोल देते है, जैसे घर से निकले नहीं पर झूठ शुरू- की रास्ते में हूँ, 10 मिनट में पहुँच रहा हूँ, गाडी ख़राब होगयी आदि। क्या होगया अगर सच बोला तो?
वो व्यक्ति आपको दो बाते तो सुनाएगा। पर हम इतनी-इतनी बातो में झूठ बोल रहे है।
हमे लगता है की यह बड़ी बात नहीं है, पर यह बहुत बड़ी बात है। की आप इतना भी सच का सामना नहीं कर सकते और फिर हमे लगता है की हम जीवन की प्रॉब्लम का सामना कर लेंगे।
महाभारत में कहा गया है:
सत्यवादी लभेतायुरनायासमथार्जवम्।
सत्य बोलने से आपको लम्बी आयु, सुखी जीवन, सरलता और शांत मन मिलता है।
अक्रोधनोऽनसूयश्च निर्वृत्तिं लभते पराम्॥ वन.२५९/२२॥
सत्य को स्वीकार करना शुरू करे और उससे भागिए मत।
निष्कर्ष
दोस्तों, एक सही दिशा में चलना, हज़ार गलत जगहों पर जाने से बेहतर है। ऊपर दिए गए सभी डिप्रेशन (अवसाद) का स्थायी और दीर्घकालिक (लॉन्ग-टर्म) समाधान है।
हमारी भारतीय संस्कृति बहुत मजबूत है, रास्ते में आने वाली चुनौतिया, जैसे डिप्रेशन आदि मानसिक बीमारिया, आसानी से सामना करना सिखाती है और एक उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने के लिए सार्थक है। (5)
It’s also good idea to take kids to nearest Gaushala. Spending time with animals, pets, feeding them can reduce stress drastically.
Good article, everybody facing stress related problem now a days in different different ways hope this blog will help many people.