आपके दुख-सुख व बिमारीयों का जिम्मेदार कौन? उससे मिलें और ठीक करें!

We ourselves are responsible for the sorrows, happiness and diseases of our life
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हम खुद” अपने जीवन के दुख सुख व बिमारीयों के जिम्मेदार हैं।

कैसे?

हम बाजार में खाने का समान खरीदने जाते हैं चीनी या अन्य वस्तुएँ खरीदते हैं तो देख कर जो सबसे सफेद होती है उसको महँगे भाव पर खरीद लेते हैं जो थोड़ी कम सफेद होती है उसको कम भाव पर भी नहीं खरीदते। जबकि ज्यादा चमकदार चीनी में गधंक व अल्टरा मैरीन ब्लु जैसे खतरनाक कैमीकल अधिक मात्रा में डाले होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए अधिक हानिकारक होते हैं।

हम ज्यादा पैसा खर्च करके अपने स्वास्थ्य का खुद ही विनाश करते हैं।

इसी प्रकार रिफाइंड तेल, गुड़, खांड, हरी दिखने वाली सब्जियाँ, गाढ़ा व मोटी मलाई वाला दुध, आइस्क्रीम, सफेद आटा, चमकते चावल,रगं बिरंगी मिठाईयाँ, चमकती दालें व सुंदर दिखने वाले पैक्ड फूड व ड्रीक्स, चाय, चाॅकलेट टाफी, कुरकुरे, बिस्कुट, नमकीन, समौसे कचौडीयाँ, ब्रेड व मैदे के बने खाद्य पदार्थ व जंक फूड, पीजे बर्गर, टूथ पेस्ट, सौन्दर्य प्रसाधन इत्यादि जो सबसे ज्यादा साफ सुंदर दिखाई देते हैं और महँगे भी होते हैं, ऐसे पदार्थ हमारे स्वास्थ्य व बुद्धी का नाश करते हैं।

हममे एक दूसरे के प्रति – ईर्षा, नफरत, व विनाश की भावनाएँ भरी पड़ी हैं।

Sorrow, Happiness, Diseases in our life who is responsible? Fit Humara Bharat

इनमें छुपे हुए जहरीले कैमीकल हमारी हड्डियों, मासपेशीयों व वाईटल अगों को गला कर कमजोर कर देते हैं। हमारे बड़े बुजुर्ग हमारा भला चाहते थे इसीलिए कहते थे जैसा खाईऐ अन्न तैसा होवे मन।

इसीलिए खाने पीने चीजों की जहर भी हमारे मन में आ चुकी है। इसलिए ही परिवारों, समाज, देश व विश्व में आपस में एक दूसरे के प्रति ईर्षा, द्वेष, नफरत, वैर व विनाश की भावनाएँ भरी पड़ी हैं।

इसीलिए आजका मानव अपना विवेक खो चुका है। विवेक खोने के कारण ही मनुष्य अच्छाई बुराई, पाप पुनः, हित्त अहित्त, नफा नुकसान, धर्म अधर्म में भेद को समझ नहीं पा रहा है।

उसको बुरी चीजें अच्छी लगती हैं शराब कबाब, मासाहार, नशीले पदार्थ, झूठ, कपट, रिश्वतखोरी, हमारखोरी, आरामखोरी वगैरह। 
सेवा, सत्संग, मेहनत, ईमानदारी, आपस में प्रेम सद्भाव बुरा लगता है🙏

जागरूकता की जरूरत

हम इस मायावी चमक धमक की दुनिया में ईश्वर के दिए हुए अमृत सामान वस्तुओं को भी भुलते जा रहे हैं या खराब कर के खा रहे हैं। इसलिए जागरूकता की जरूरत है संसार में कोई भी व्यत्कि ईश्वर से ज्यादा बुद्धिमान, शत्किशाली व कल्याणकारी नहीं है।

ईश्वर जमीन से पेड पौधों के माध्यम से सूर्य के ताप से पकाकर हमें भोजन प्रदान करता है। जो हमारे स्वा्स्थ्य के लिए सर्वश्रेष्ठ होता है।

इसलिए जो भी भोजन सीधे ईश्वर से मौसम के अनुसार मिलता है उसको उसी शक्ल में खाना शुरू करें जो नहीं खाया जा सकता उसको खुद अपने घर में कम से कम पका कर कम से कम मिर्च मसाले मिलाकर खाएँ।

हर चीज़ में केमिकल” कैसे बचे इनसे?

अब आपके मन में सवाल होगा:

  • सब चीजों में तो कैमीकल मिला हुआ है इससे हम कैसे बच सकते हैं?
  • खाने के लिए ओर कुछ है ही नहीं। सब्जियाँ, दुध व फल सब में तो यूरीया पेस्टीसाईड मिला हुआ है?
  • आजकल शुद्ध चीजें कहाँ मिलेगी भूखे मर जाएंगे?
  • हम अकेले थोड़ी खा रहें हैं सारी दुनिया ही खा रही है?
  • क्या करें हम कहाँ से शुद्ध चीजें लाएँ कैसे सुधारे, हमारी कोई बात मानता नहीं, बच्चे नहीं मानते।

इन सब का उत्तर: हमारे मन में स्व्स्थ्य होने की तीव्र जिज्ञासा नहीं है।

जिसके मन में जिज्ञासा होती है वह हिमालय पर चढने से पहले यह नहीं सोचता अगर मै गिर गया तो मुझे कोई बचाने वाला होगा। अगर मुझे गिर कर चोट आ गई तो कोई डाक्टर या अस्पताल नजदीक है जहां मेरा इलाज हो सके।
जो व्यत्कि ऐसे सोचेगा वह कभी भी हिमालय पर चढने की हिम्मत नहीं कर सकता अगर थोड़ी बहुत करेगा भी तो सफल नहीं हो सकता।

हमारे अंदर अगर जिज्ञासा नहीं है स्व्स्थ्य होने की तो हमारे मन में भी ऐसे ही विचार आते हैं शराब पीने वाला शराब नहीं छोड़ सकता, कबाब खाने वाला कबाब नहीं छोडता। दवाइयाँ खाने वाले दवाइयाँ नहीं छोडते। दवाइयाँ छोडने से लोग डरते हैं कहीं ऐसा हो गया तो।

प्राकृतिक जीवन जीना सीख लो

प्राकृतिक जीवन जीना सीख कर अपने आप सारी दवाइयाँ हमेशा के लिए छूट जाती हैं। ऐसे ही दूसरे स्व्स्थ्य नाशक खाद्य पदार्थों को नहीं छोड़ते। अपने मन से तर्क कुतर्क करके बुराइयों को नहीं छोडते। मगर भगवान के बनाए कर्म सिघांत के अनुसार बुराई का परिणाम बुरा और अच्छाई का परिणाम अच्छा ही होता है। इसलिए हमें जो बिमारीयाँ व दुख आ रहे हैं वह हमारी गलतियों का परिणाम ही है।

हमारे अंदर जिज्ञासा होनी चाहिए प्राकृतिक स्व्स्थ्य रहने की। हम बिमार हो कर परिवार समाज देश पर भार बन रहे हैं। हम बिमार हो कर सारे परिवार के लिए दुख का कारण बन रहे हैं।

हम सबकी सेवा करने के योग्य बने, सेवा करवाने के योग्य न बने।

बस अपने विचारों को बदले, अपने अंदर प्राकृतिक स्व्स्थ्य रहने की जिज्ञासा पैदा करें। जो लोग इस बिगडी हूई व्य्वस्था को सुधारने में लगे हैं उनकी आलोचना ना करें उनको सहयोग करें।

मिलावट वाली चीजों को खरीदना बन्द करें शुद्ध चीजों को ढूँढ कर खाना शुरू करें। धीरे धीरे सारा बिगडा काम सुधरने लगेगा। चीनी व बाजार की मिठाईया बन्द करके गुड़ शक्कर खाड़ खाना शुरू करें। छोडना कुछ नहीं है केवल भोजन को बदलना है। स्व्स्थय नाशक भोजन को छोड़ कर स्व्स्थ्य वर्धक भोजन खाना शुरू करदें।

इसके लिए आप हमारे संदेश पढ़ते रहें। क्या-क्या खाएं कैसे खाएं हम आपको लिखते रहेंगे।  

जैसे यह पढ़े:
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ऐसे ही भगवान ने हमारी भलाई के लिए कुछ लोगों को यह सब चीजों को सुधारने में लगा रखा है। आप उन लोगों से जुड़े रहें धीरे धीरे आपको सारी चीजें शुद्ध मिलनी शुरू हो जाएगी।

हम कोहूलो पर गुड़ बनवाने जाते हैं कोहूलो वालों को पूछते हैं भाई आप गुड़ में रगं व अन्य कैमीकल क्यों मिलाते हो उनका सीधा जवाब होता है जी मंडी में बिकता नहीं हम क्या करें। गहराई से सोचो हम खुद ही अच्छे भले लोगों को मिलावट करने के लिए मजबूर करते हैं।

सारा दोष मिलावट करने वालों का नहीं है इसमें जाने अनजाने हमारा भी हाथ है। हम भी इन सब चीजों को बिगाड़ने के दोषी हैं। हमारा इस संदेश को भेजने का भाव किसी की बुराई या निंदा या नीचा दिखाना नहीं है अपितु सोए हुए लोगों में जागरूकता लाना है। हमारा समाज ज्यादा से ज्यादा अस्पताल खोलने, दवाइयों का उत्पादन बढाने से स्व्स्थ्य नहीं होगा। अस्पताल और दवाइयों का अपना महत्व व जरूरत है।

हमारे खाने पीने की वस्तुओं से ही दवाईयाँ बनती हैं मगर दवाईयों की एक सीमा है उसके आगे काम नहीं करती। जब तक हमारे अंदर खाने पीने, प्राकृतिक रहन सहन की जागरूकता नहीं आती तब तक हम स्व्स्थ्य नहीं हो सकते। खाने पीने की चीजों के अंदर छुपी हुई ज़हर हमारे जीवन का नाश कर रही है। इसीलिए दिन व दिन बिमारीयाँ बढ़ती जा रही हैं अस्पताल कम पड़ते जा रहे हैं।

आज का मानव संसार के सुख साधन जुटाने में व्यस्त है मगर उनका उपयोग व सुख नहीं ले पा रहा है। स्व्स्थ्य व खुशहाल जीवन का आनंद लेने के लिए हमें जीवन जीना सीखने की जरूरत है।

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हर रविवार को आप आश्रम में आकर निःशुल्क प्राकृतिक स्व्स्थ्य रहना सीख सकते हैं। समय 9 बजे से 1 बजे तक।

धन्यवाद।
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दर्शन आश्रम
गांव बूढेडा, गुडगाँव

सूत्रों का कहना है

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